बरसाना के भानुगढ़ पहाड़ी की चोटी पर स्थित श्री राधा रानी मंदिर, ब्रजमंडल के कुछ प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। राधारानी को समर्पित यह प्राचीन मंदिर, ब्रजवासियों के बीच ‘श्रीजी मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। ब्रज के इस दिव्य मंदिर में भक्ति और प्रेम के साथ-साथ आस्था का अनुभव करने, यहां हर साल हजारों भक्त आते हैं। तो आइए इस प्राचीन और दिव्य मंदिर की कुछ और रोचक बातें जानते हैं।
विषय सूचि
दर्शन करने का समय
- 05:00 AM – 06:00 AM
- 07:30 AM – 01:00 PM
- 05:00 PM – 09:00 PM
मंदिर की वास्तुकला
राधा रानी मंदिर की वास्तुकला अद्वितीय है। यह मंदिर मुख्य रूप से लाल और सफेद पत्थरों से बना है, जिसे राधा और कृष्ण के प्रेम प्रतीक के रूप में देखा जाता है। मंदिर की संरचना मुगल काल की स्थापत्य कला को दर्शाती है। जिसमें खूबसूरत मेहराब, स्तंभ, गुंबद और भित्ति चित्र शामिल हैं। मंदिर के अंदर की दीवारों और छतों पर राधा और कृष्ण की लीलाओं को चित्रित किया गया है। लेकिन इन चित्रकारियों के अलावा जो चीजें राधा रानी मंदिर को और भव्य बनाती हैं, वो हैं यहाँ की सीढ़ियाँ। जो इस मंदिर के मुख्य आकर्षण का केंद्र हैं। क्योंकि मुख्य मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 200 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।
राधा रानी मंदिर के प्रवेश द्वार पर वृषभानु महाराज जी का महल स्थित है। जहाँ भक्त वृषभानु महाराज, कीर्ति, श्रीदामा और राधिका के दर्शन कर सकते हैं। इसके पास ही ब्रह्मा जी के साथ-साथ अष्टसखी मंदिर भी मौजूद है। जहाँ राधा और उनकी सखियों की पूजा की जाती है।
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मंदिर की मुख्य मूर्तियाँ
राधा रानी मंदिर के गर्भगृह में मौजूद मुख्य मूर्तियों में, राधा रानी और भगवान श्री कृष्ण की मूर्तियाँ प्रमुख हैं। जहाँ राधा रानी की मूर्ति को ‘लाड़ली जी’ के नाम से भी संबोधित किया जाता है। इसके साथ ही मंदिर के मुख्य गर्भगृह में वृषभानु महाराज, कीर्ति और श्रीदामा की मूर्तियाँ भी मौजूद हैं। जो मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थित महल में स्थापित हैं। राधा रानी मंदिर में मौजूद ये मूर्तियाँ भक्तों को भक्ति और प्रेम के एक नए आयाम से परिचित कराती हैं। जो हर साल लाखों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
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मंदिर का इतिहास
राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना में मौजूद, राधा रानी मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। स्थानीय मान्यता है कि, इस मंदिर का निर्माण आज से 5 हजार साल पहले श्री कृष्ण के परपोते वज्रनाभ ने करवाया था। लेकिन समय के साथ मंदिर का ढांचा कमजोर होने लगा और एक समय ऐसा आया जब मंदिर एक खंडहर में बदल गया। लेकिन मंदिर की याद लोगों के जहन में जिंदा रही। फिर एक वो समय आया जब गोस्वामी नारायण भट्ट ने इस मंदिर के मूर्ति की खोज कर, मंदिर को पुनः स्थापित किया। जिसके बाद साल 1675 में मुगल शासक अकबर के करीबी राजा वीर सिंह ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। जो आज स्थानीयों के बीच ‘लाड़लीजी’ और ‘श्रीजी’ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। जो बरसाना की पावन भूमि पर अपनी मौजूदगी से, भक्तों को राधारानी के होने की गवाही देता है।
प्रमुख उत्सव
राधा रानी मंदिर अपनी अद्वितीय वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ अपने जीवंत उत्सवों के लिए भी जाना जाता है। जहाँ विशेष अवसरों पर कई प्रमुख उत्सव मनाए जाते हैं। जिनमें राधाष्टमी, जन्माष्टमी, लठमार होली, शरद पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा शामिल है। राधाष्टमी, राधा रानी के जन्मोत्सव को कहा जाता है। जो राधा रानी मंदिर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मंदिर को फूलों से सजाया जाता है, जहाँ भक्त विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
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वहीं लठमार होली बरसाना में प्रेम और शरारत का प्रतीक है। इस उत्सव में महिलाएं पुरुषों को लाठियों से मारती हैं और इस दौरान ब्रज के पारंपरिक होली के गीत भी गाए जाते हैं। यह होली के पहले सप्ताह से शुरू होकर रंग पंचमी तक चलता है। इस दौरान मंदिर को फूलों और गुब्बारों के साथ-साथ बत्तियों से सजाया जाता है। इन विशेष अवसरों पर मंदिर में राधा-कृष्ण को नए वस्त्र और आभूषण पहनाए जाते हैं।