राधारानी की जन्मस्थली, यानि बरसाना के श्री राधा रानी मंदिर से लगभग 600 मीटर की दूरी पर स्थित है दान बिहारी मंदिर | यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण के एक अन्य स्वरूप को समर्पित है। जिसमें शामिल ‘दान’ शब्द का अर्थ दान है और ‘बिहारी’ शब्द श्री कृष्ण को संदर्भित करता है। ब्रजमण्डल में सदियों से भगवान श्री कृष्ण के लिए प्रेमपूर्वक बिहारी शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है। तो आइए भगवान के एक अन्य स्वरूप को दर्शाते, इस दान बिहारी मंदिर के बारे में कुछ रोचक बातें जानते हैं।

मंदिर की वास्तुकला

दान बिहारी मंदिर की वास्तुकला अद्भुत और आकर्षक है। यह मंदिर पारंपरिक उत्तर भारतीय शैली में निर्मित है, जिसमें बारीकी से तराशी गई मूर्तियां और नक्काशी शामिल है। मंदिर की प्रमुख संरचना सफेद संगमरमर से बनी है, जो इसे पवित्रता और शांति का प्रतीक बनाती है। इसके गुंबद और मीनारें भी सुंदरता का बेजोड़ उदाहरण हैं। मुख्य गर्भगृह में भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं, जिन्हें फूलों और गहनों से सजाया जाता है। मंदिर की दीवारों पर श्रीकृष्ण और राधारानी  की विभिन्न लीलाओं का चित्रण किया गया है, जो दर्शनार्थियों को उनकी दिव्यता का अनुभव कराता है। इसके साथ ही मंदिर परिसर में मौजूद सुंदर बगीचे और तालाब, मंदिर की प्राकृतिक सुंदरता को और बढ़ाते हैं।

यह भी जानें – श्री कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहते हैं ? Why is Krishna called ‘Ranchod’?

इतिहास- Daan Bihari Temple History

दान बिहारी मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन और समृद्ध है। यह मंदिर मुख्यतः राधा-कृष्ण की प्रेम कथाओं और लीलाओं से संबंधित है। लेकिन इस मंदिर के अस्तित्व को श्री कृष्ण की एक अन्य लीला से भी जोड़ा जाता है। ब्रजमण्डल में प्रचलित एक कहानी के अनुसार, एक बार यहां का एक स्थानीय गरीब ब्राह्मण अपनी बेटी की शादी के लिए आवश्यक धन जुटाने के लिए संघर्ष कर रहा था। लेकिन धन जुटाने में विफल होने के उपरांत जब उसने अपने इष्ट भगवान श्री कृष्ण को याद किया, तब भगवान ने उसकी मदद की।

कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने उस गरीब व्यक्ति की पीड़ा को देखकर राधा के वजन के बराबर सोने का सामान उपहार के रूप में दिया। बिहारी जी के इसी ऐतिहासिक दान की याद में, दान बिहारी मंदिर का निर्माण हुआ।

यह भी जानें – निधिवन के कुछ रहस्य जो आज भी नहीं सुलझे (Nidhivan Mysteries)

इस मंदिर के इतिहास से जुड़ी एक अन्य कहानी भी खूब विख्यात है। माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण ने राधा और अन्य गोपियों के साथ विभिन्न लीलाएं की थीं, जिनमें दान लीला विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस लीला में श्रीकृष्ण गोपियों से उनके दही-मक्खन के दान की मांग करते थे। जिससे उनका नाम ही ‘दान बिहारी’ पड़ गया। आगे चल कर एक कृष्णभक्त स्थानीय राजा को प्रभु का ये नाम इतना पसंद आया कि, उन्होंने यहां इस मंदिर का निर्माण करवाया। जिसका समय-समय पर पुनर्निर्माण और संवर्धन होता रहा। जिससे इसकी प्राचीनता और महत्ता आज भी बनी हुई है। दान बिहारी मंदिर से जुड़ीं यही प्राचीन कहानियां इसके ऐतिहासिक महत्व को और बढ़ाती हैं।

मंदिर की मान्यताएं और परंपरा

भगवान श्री कृष्ण की दिव्य दयालुता को दर्शाता यह प्राचीन मंदिर,अपने अंदर अनेकों मान्यताओं और परंपराओं को भी समेटे हुए है। यहां प्रतिवर्ष होली और जन्माष्टमी के पर्व विशेष धूमधाम से मनाए जाते हैं। होली के अवसर पर यहां की लठमार होली विशेष आकर्षण का केंद्र होती है, जहां राधा की गोपियां श्रीकृष्ण के ग्वालों को लाठियों से मारती हैं। इसके साथ ही यहां  श्रावण मास में झूलन उत्सव भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

यह भी जानें – टटिया स्थान – जहां आज तक नहीं आया कलयुग | Tatiya Sthan

मंदिर में आने वाले श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना और भजन-कीर्तन के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की कृपा प्राप्त करते हैं। यहां आने वाले भक्तों का मानना है कि, इस मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। मंदिर के सेवक और पुजारी भक्तों को श्रीकृष्ण और राधा की कथाएं सुनाते हैं, जिससे वे आध्यात्मिक सुख की अनुभूति करते हैं। इस प्रकार दान बिहारी मंदिर आस्था और श्रद्धा का महत्वपूर्ण केंद्र है, जहां भक्तों को दिव्य शांति और आनंद की प्राप्ति होती है।

Categorized in:

मंदिर,

Last Update: 16 July 2024