जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज भारत के एक प्रसिद्ध हिंदू संत, आध्यात्मिक गुरु और भक्तियोग के अद्वितीय प्रवर्तक थे। उन्हें 1957 में “जगद्गुरु” की उपाधि से सम्मानित किया गया था। जो उपाधि केवल उन महान संतों को दी जाती है जिन्होंने वेदों, शास्त्रों और धर्म के सिद्धांतों को समझाने और प्रचार करने में अद्वितीय योगदान दिया हो। उन्हें यह उपाधि काशी के विद्वानों द्वारा तब दी गई थी जब उन्होंने वेदांत, उपनिषद और भागवत के सिद्धांतों का विशद ज्ञान प्रस्तुत किया।
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श्री कृपालु जी महाराज ने भक्तियोग के मार्ग को अपने अनुयायियों के लिए सुलभ और स्पष्ट किया। वे मानते थे कि भगवान की भक्ति और प्रेम ही मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है और उन्होंने इस संदेश को देश-विदेश में फैलाया। उनके प्रवचनों और शिक्षाओं में भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के प्रेम की महत्ता बताई जाती थी। कृपालु जी महाराज ने जीवनभर भगवद भक्ति, ध्यान, और आध्यात्मिक साधना पर जोर दिया और लाखों भक्तों को अध्यात्मिक पथ पर प्रेरित किया। उनके द्वारा स्थापित कई आश्रम और संगठन आज भी उनके शिक्षाओं को आगे बढ़ा रहे हैं।
जीवन यात्रा
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का जन्म 5 अक्टूबर 1922 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के मंगरौली गांव में हुआ था। उनका बचपन एक धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण में बीता, जहां उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। छोटी उम्र से ही उन्हें धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों के अध्ययन में गहरी रुचि थी। श्री कृपालु जी का बाल्यकाल साधारण था, परंतु उनके मन में भगवान के प्रति अपार श्रद्धा और भक्ति का भाव था। कृपालु जी महाराज ने वाराणसी और चित्रकूट जैसे प्रमुख धार्मिक केंद्रों में शिक्षा प्राप्त की। जहां उन्होंने वेद, पुराण, उपनिषद और अन्य धर्मग्रंथों का गहन अध्ययन किया। कम उम्र में ही उन्होंने अध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ तात्त्विक विवेचना की अद्वितीय क्षमता विकसित कर ली थी।
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कृपालु जी महाराज को आध्यात्मिक दीक्षा की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि उन्होंने स्वयं ही ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लिया था और बाद में उन्हें “जगद्गुरु” की उपाधि से विभूषित किया गया। उनका जीवन संपूर्ण रूप से भक्ति और भगवान के प्रेम को समर्पित था। श्री कृपालु जी महाराज ने 15 नवंबर 2013 को अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु के बाद भी उनके अनुयायी उनके बताए मार्ग पर चलते हुए भक्तियोग का पालन करते हैं और उनके द्वारा स्थापित संस्थाएं आज भी सक्रिय हैं।
धार्मिक और सामाजिक कार्य
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपने जीवनकाल में न केवल आध्यात्मिक जागरण के कार्य किए, बल्कि उन्होंने कई सामाजिक और मानवतावादी कार्यों में भी सक्रिय योगदान दिया। उन्होंने “जगत गुरु कृपालु परिषद” की स्थापना की, जो आज भी उनकी शिक्षाओं को विश्वभर में फैलाने का कार्य कर रही है। इस संगठन के तहत कई आश्रम और मंदिरों का निर्माण हुआ, जिनमें प्रमुख हैं “भक्ति धाम” मंगरौली, “प्रेम मंदिर” वृंदावन, और “कृष्णधाम” बरसाना।
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धार्मिक प्रचार-प्रसार के साथ-साथ कृपालु जी महाराज ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कई कार्य किए। उन्होंने गरीब और जरूरतमंदों के लिए मुफ्त शिक्षा और चिकित्सा सेवाओं की व्यवस्था की। उनके द्वारा स्थापित “जगद्गुरु कृपालु चैरिटेबल हॉस्पिटल्स” में आज भी हजारों लोग मुफ्त इलाज पाते हैं। इसके अलावा उन्होंने महिलाओं और बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। श्री कृपालु जी महाराज ने भागवत कथा, रामायण और अन्य धार्मिक ग्रंथों के माध्यम से समाज में नैतिकता, धार्मिकता, और प्रेम का संदेश फैलाया।
उनके उपदेशों ने लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव किया और उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त करने में मदद की। उन्होंने जीवनभर भक्ति, प्रेम, करुणा और सेवा के महत्व पर जोर दिया और मानवता की सेवा को भगवान की सेवा का सर्वोत्तम रूप बताया। उनके धार्मिक और सामाजिक कार्य आज भी लाखों लोगों को प्रेरित कर रहे हैं।