कृष्ण पक्ष (Krishna paksha) हिंदू पंचांग का वह चरण है, जब चंद्रमा की कलाएं घटती हैं। यह अमावस्या से पहले के 15 दिनों का समय होता है, जिसमें पूर्णिमा के बाद चंद्रमा का आकार धीरे-धीरे कम होता जाता है और अंततः अमावस्या को समाप्त होता है। कृष्ण पक्ष का अर्थ है “अंधकार का चरण”। इसका नाम भगवान कृष्ण से संबंधित नहीं है, बल्कि यह “अंधकार” या “अल्प प्रकाश” के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। इस दौरान चंद्रमा का प्रकाश कम होने से रातें अपेक्षाकृत अंधेरी होती हैं।
क्या है कृष्ण पक्ष ? What is Krishna Paksha?
कृष्ण पक्ष वह अवधि है जो पूर्णिमा के दिन से शुरू होकर अमावस्या तक चलती है। यह समय 15 दिन का होता है और इसे चंद्रमा की घटती कलाओं से पहचाना जाता है। इस चरण में चंद्रमा हर दिन थोड़ा-थोड़ा क्षीण होता जाता है, जिससे उसका प्रकाश घटता है। यह चंद्र मास का दूसरा भाग है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कृष्ण पक्ष में ध्यान, साधना और आत्मचिंतन का समय होता है। यह काल अंधकार और शांति का प्रतीक माना जाता है, जो मनुष्य को अपने जीवन के नकारात्मक पहलुओं पर चिंतन करने और उन्हें सुधारने का अवसर प्रदान करता है। इस पक्ष में पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। इसे एक ऐसा समय माना जाता है,जब नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय हो सकती है। इसलिए कृष्ण पक्ष में शुभ कार्यों से बचने की परंपरा है।
यह भी जानें – Narkasur Vadh – इसलिए मनायी जाती है छोटी दिवाली
कृष्ण पक्ष में क्यों नहीं किए जाते शुभ कार्य?
कृष्ण पक्ष में शुभ कार्य न करने का कारण ज्योतिष और धार्मिक परंपराओं में निहित है। इसे अंधकार और नकारात्मक ऊर्जा का समय माना जाता है। चूंकि चंद्रमा का प्रकाश घटता है, यह समय शारीरिक और मानसिक ऊर्जा में कमी का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस समय किए गए शुभ कार्यों में स्थायित्व और सफलता प्राप्त नहीं होती। इसके अलावा, पितरों को समर्पित श्राद्ध कर्म और तर्पण जैसे कार्य इसी समय किए जाते हैं। यह समय आत्मचिंतन और शांति का माना गया है, इसलिए इसे भौतिक कार्यों के बजाय आध्यात्मिक साधना के लिए उपयुक्त बताया गया है। हिंदू परंपरा में विवाह, गृह प्रवेश, और नए कार्यों की शुरुआत चंद्रमा के सकारात्मक और प्रकाशवान चरण, यानी शुक्ल पक्ष में करना शुभ माना जाता है।
कृष्ण पक्ष से जुड़ी मान्यताएं
- कृष्ण पक्ष के दौरान पितृ पक्ष का आयोजन होता है, जिसमें पितरों को तर्पण और श्राद्ध अर्पित किए जाते हैं।
- इस समय को आध्यात्मिक साधना और आत्मचिंतन के लिए उपयुक्त माना जाता है।
- यह माना जाता है कि इस दौरान नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय रहती है, इसलिए सतर्कता बरतनी चाहिए।
- विवाह, गृह प्रवेश, और नए व्यवसाय शुरू करने जैसे कार्य इस समय नहीं किए जाते।
- घटते चंद्रमा को अवसाद और अशांति से जोड़ा जाता है, इसलिए इसे शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नहीं माना जाता।
यह भी जानें – Who was Jarasandha? कैसे हुई उसकी श्री कृष्ण से शत्रुता ?
कैसे हुई कृष्ण पक्ष की शुरुआत? – History of Krishna Paksha
कृष्ण पक्ष की शुरुआत चंद्रमा के घटने के प्राकृतिक चक्र से होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह पक्ष समुद्र मंथन से भी जुड़ा है। ऐसा कहा जाता है कि जब देवता और असुर समुद्र मंथन कर रहे थे, तो अमावस्या के समय चंद्रमा का प्रकाश क्षीण हुआ। यह भी माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध के दौरान इसी पक्ष में गीता का ज्ञान दिया था।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, चंद्रमा की स्थिति पृथ्वी और सूर्य के बीच के संबंधों पर निर्भर करती है। पूर्णिमा के बाद चंद्रमा धीरे-धीरे सूर्य के पीछे की ओर बढ़ता है, जिससे उसका प्रकाश कम होता जाता है। धार्मिक दृष्टि से इसे आत्मचिंतन और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक माना गया है।
कृष्ण पक्ष की तिथियां और उनकी विशेषताएं
कृष्ण पक्ष में कुल 15 तिथियां होती हैं, जो प्रतिपदा से अमावस्या तक चलती हैं। प्रत्येक तिथि का अपना महत्व है:
- प्रतिपदा- चंद्रमा के घटने की शुरुआत।
- द्वितीया से दशमी- साधारण धार्मिक अनुष्ठानों और ध्यान के लिए उपयुक्त।
- एकादशी- व्रत और पूजा का विशेष दिन।
- त्रयोदशी- धन और स्वास्थ्य के लिए पूजा की जाती है।
- चतुर्दशी- काली पूजा और तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण।
- अमावस्या- अंधकार का चरम, पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध का दिन।
कृष्ण पक्ष की हर तिथि आत्मचिंतन और साधना का अवसर प्रदान करती है। यह समय हमें यह समझने में मदद करता है कि, जीवन के अंधकारमय पहलुओं से कैसे निपटा जाए |