सनातन धर्म पुरे विश्व को ही अपने ओर आकर्षित करता है | पश्चिम में सनातन को अपनाते लोग इसका अनूठा प्रमाण हैं | किन्तु, सनातन धर्म का ही कुछ ऐसे पहलु भी हैं जिनके बारे में लोग बेहद कम या बिलकुल नही जानते | ऐसे ही सनातन धर्म का एक विश्व प्रसिद्ध हिस्सा हैं, हमारे नागा साधू |
शरीर पर भस्म, लम्बी जटाएं, हाथ में कमंडल और तपस्या करने का अलग तरीका, सनातन के उस हिस्से या कहें की उस सच्चाई को उजागर करते हैं जिसे आम लोग स्वीकार नही करते | महाकुम्भ मेले के दौरान ऐसे हजारों नागा साधू देखने को मिलते हैं जो शाही स्नान कर अपने देवता को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं |
विषय सूचि
कौन हैं नागा साधू ?


अघोरी अन्य साधू संत की तरह ही सन्यास लिए हुए भक्त होते हैं जो तपस्या का बहुत कठिन रास्ता चुनते हैं | नागा साधू सर्दी और गर्मी में भी कपड़े नही पहनते और अपने शरीर पर चिता की भस्म लगते हैं | इसका तात्पर्य जीवन के अंतिम सत्य, मृत्यु को दर्शाना है |
कहाँ रहते हैं नागा साधू ?
मन्यता है की नागा साधू हिमालय और हरिद्वार जैसे जगह में आम लोगों की पहुँच से दूर रहते हैं | वहां ये अपना हर समय तपस्या में विलीन हो कर बिताते हैं | एक साथ हज़ारों की संख्या में इकठ्ठे होने वाला नागा कुम्भ मेले के बाद कहाँ चले जाते हैं किसी को पता नहीं चलता |
यह भी जानें – Kumbh IITian Baba Abhay Singh ने बताया सन्यास लेने का कारण
कैसे बनते हैं नागा साधू ?

नागा साधू बनने के लिए शुरुआत ब्रह्मचर्य की दीक्षा से होती है। इसके बाद लगभग 3 साल तक गुरुओं की सेवा धर्म, कर्मकांड और दर्शन से सम्बंधित शिक्षा दी जाती है। इसके बाद कुम्भ के दौरान मुंडन करवाकर 108 बार नदी में डुबकी लगवा कर कड़ी तईयारी शुरू कर दी जाती है जिसमे व्यक्ति को 5 सन्यासियों को अपना गुरु मानना पड़ता है।
इन सब के बाद व्यक्ति को अवधूत बनाया जाता है। इसमें सबसे पहले जनेऊ संस्कार, 17 पिंड दान करवाने के साथ ही सन्यासी जीवन की शपथ भी दिलवाई जाती है। इनमे से व्यक्ति स्वयं अपना भी पिंड दान करता है, जो दर्शाता है की उसने संसार से विदा ले ली है | इसके बाद डंडी संस्कार करवाकर सारी रात ॐ नमः शिवाय का जाप करवाया जाता है। जाप पूरा होने के बाद अखाड़े में विजय हवन करवाया जाता है। हवन के बाद गंगा में 10 डुबकियां और लगवाई जाती है जिसके बाद डंडी त्याग होता है। इस चरण के दौरान होने वाली पूरी प्रक्रिया को बिजवान कहते है।
पहले चरणों के बाद शुरू होती है सबसे कठिन प्रक्रिया दिगंबर और श्री दिगंबर की। बता दें की दिगंबर नागा पूरे शरीर पर सिर्फ लंगोट ही लपेट सकता है लेकिन जो श्री दिगंबर होते है उन्हें सभी वस्त्रों का त्याग करना पड़ता है। इस प्रक्रिया में श्री दिगंबर की इंद्री भी तोड़ दी जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में 6 वर्ष से अधिक का समय लग जाता है।
नागा साधू और महाकुम्भ


आपने कुम्भ के संदर्भ में शाही स्नान के बारे में तो ज़रूर सुना होगा | यह शाही स्नान इन्ही नागा साधू द्वारा किया जाता है | इनके पश्चात ही आम श्रद्धालु संगम में दुपकी लगा कर स्नान करते हैं |
हर 4 वर्ष में होने वाले कुम्भ में ऐसे नागा साधू प्रकट को कर मानवता को शिक्षा देते हैं| जो भी श्रद्धालु कुम्भ में जाने का भाग्य प्राप्त करते हैं, उन्हें ऐसे हजारों नागा साधुओं से आशीर्वाद प्राप्त होता है | मान्यता है की इनका आशीर्वाद बहुत शक्तिशाली होता है और जीवन के समस्त दुखों से मुक्ति दिलाता है |
1757 गोकुल युद्ध – अहमद शाह अब्दाली और नागा साधू


मध्यकालीन युग में नागा साधुओं ने इस्लामी आक्रमणकारियों से हिंदू संस्कृति, आस्था और मंदिरों की रक्षा की। आदि शंकराचार्य ने हमलावरों द्वारा अपवित्रता का मुकाबला करने के लिए 8वीं शताब्दी में उन्हें सैन्य प्रशिक्षण देना शुरू किया। अहमद शाह अब्दाली के 1757 के आक्रमण के दौरान, अफगानों ने मथुरा, वृंदावन और महाबन में अत्याचार किए। हालांकि, गोकुल में, 4,000 नागा साधुओं ने 10,000 अफगान सैनिकों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। भारी हताहतों के बावजूद, नागाओं ने अपने वीर कौशल से अफगानों को परास्त कर दिया, जिससे उन्हें पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। इस वीरतापूर्ण बचाव ने गोकुल और उसके पवित्र स्थलों को बचाया। नागा साधुओं का त्याग, विश्वास और अदम्य भावना उनकी भक्ति का एक शक्तिशाली प्रमाण है।
अगर आप भी नागा साधुओं के बारे में जान कर प्रसन्न हुए, और महाकुम्भ 2025 की और जानकारी प्राप्त करना कहते हैं तो यहाँ क्लिक करें |