राक्षसी पूतना को हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित सबसे शक्तिशाली और मायावी राक्षसियों में से एक माना जाता है। जो एक ऐसी खूंखार राक्षसी थी, जिसे अपने भयानक कद काठी और वीभत्स रूप के लिए हिन्दू महाकाव्यों में वर्णित एक महत्वपूर्ण किरदार के रूप में देखा जाता है।
श्रीमद्भागवत पुराण की माने तो राक्षसी पूतना कंस के आदेश पर गोकुल आई थी। मथुरा के राजा और राक्षसों के प्रमुख कंस ने, ये भविष्यवाणी सुनी थी कि देवकी का आठवां पुत्र ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। इससे डरकर कंस ने नवजात शिशु कृष्ण को मारने के लिए पूतना को गोकुल भेजा था। लेकिन बाल कृष्ण के समक्ष ना तो राक्षसी पूतना की कोई योजना काम आईं और ना हीं उसकी शक्तियां। जो अंत में श्री कृष्ण द्वारा मारी गई।
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श्रीकृष्ण ने कैसे किया पूतना वध? Putna Vadh History
श्रीमद्भागवत पुराण में श्रीकृष्ण द्वारा पूतना वध का बड़ा हीं रोचक वर्णन मिलता है। पूतना अपनी मायावी शक्तियों के कारण, एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर सकती थी। उसने इसी शक्ति का उपयोग करके गोकुल की स्त्रियों और बच्चों को भ्रमित किया और स्वयं को एक साधारण स्त्री के रूप में प्रस्तुत किया। उसकी योजना थी कि, वह नवजात कृष्ण को अपने विषैले स्तनपान द्वारा मार डालेगी।
भगवान विष्णु के अवतार बाल कृष्ण अपनी दिव्यता से राक्षसी पूतना के इरादों को पहले ही भांप गए थे। कहते हैं कि, जब पूतना बाल कृष्ण को उठाकर अपने विषैले स्तनों से दूध पिलाने लगी। तो कृष्ण ने उस दूध को पीने के बजाय उसकी जीवन शक्ति को ही खींच लिया। जिसके बाद पूतना ने अपने असली रूप में वापस आने की कोशिश की, लेकिन कृष्ण ने उसकी छाती को इतनी मजबूती से पकड़ लिया कि वह उसे छुड़ा नहीं पाई। पूतना ने चीखते-चिल्लाते हुए आसमान में उड़ने की कोशिश की, लेकिन अंततः उसकी सारी शक्ति समाप्त हो गई और वह मृत होकर जमीन पर गिर पड़ी। पूतना के गिरते ही वह अपने भयानक राक्षसी रूप में आ गई, जिसका रूप अत्यंत विशाल और विकराल था। जिसे देख स्वयं गोकुलवासी अचंभित हो गए थे।
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कृष्ण के इस अद्भुत कारनामे से गोकुल के सभी लोग हैरान और अभिभूत हो गए। पूतना का वध श्रीकृष्ण के बाल्यकाल के प्रमुख कारनामों में से एक माना जाता है और इसे उनकी लीला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, सत्य और धर्म के आगे उसका अंत सुनिश्चित है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
पूतना वध की कथा श्रीमद्भागवत महापुराण के साथ -साथ अन्य पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। इस कथा का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी है। जो यह दिखाता है कि भगवान कृष्ण ने अपने जीवन की शुरुआत से ही बुराई का नाश करना शुरू कर दिया था। इसके अलावा यह कथा भारतीय लोककथाओं और सांस्कृतिक परंपराओं में भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। पूतना को एक राक्षसी के रूप में देखा जाता है, जो समाज में बुराई और छल का प्रतीक है। जबकि कृष्ण को धर्म और सत्य के रक्षक के रूप में देखा जाता है।