महाभारत के युद्ध में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जिनमें से एक अश्वत्थामा को भगवान कृष्ण द्वारा दिया गया श्राप था। जिस श्राप को करुक्षेत्र में हुई धर्म और अधर्म की उस लड़ाई के अहम पड़ाव के रूप में देखा जाता है। क्योंकि वो अश्वत्थामा जो द्रोणाचार्य और कृपी के पुत्र थे, वो अपने क्रूर कृत्यों के कारण भगवान कृष्ण के प्रकोप का भागी बने। जिनके मस्तक से उनकी दिव्य मणि को निकलवाकर, भगवान ने उन्हे एक भयानक श्राप के साथ कलयुग के अंत तक दर्द के साथ भटकने के लिए छोड़ दिया। तो आखिर क्यों दिया श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को इतना भयानक श्राप ? आइए जानते हैं।
उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग
महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा ने अपने पिता द्रोणाचार्य की भांति कौरवों का साथ दिया था। जिनको मरते-मरते दुर्योधन ने कौरवों के जीत की जिम्मेदारी सौंपी थी। महाभारत के उन अंतिम दिनों में अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को मारने के लिए, ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। अश्वत्थामा ने यह कृत्य पांडवों से प्रतिशोध लेने के उद्देश्य से किया गया था। हालांकि, भगवान कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ की रक्षा की और परीक्षित को पुनर्जीवित किया। लेकिन अश्वत्थामा के इस अनैतिक और घृणित कृत्य लिए कृष्ण ने अश्वत्थामा के सिर से उनकी मणि निकलवा ली और यह श्राप दिया कि,वह कलयुग के अंत तक पृथ्वी पर भटकता रहेंगे। यही कारण है कि,अश्वत्थामा आज भी जिंदा हैं और उनकी गिनती सात चिरंजीवियों में होती है।
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धर्म का उल्लंघन
महाभारत के युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने कई बार धर्म का उल्लंघन किया। युद्ध के मैदान में एक योद्धा के रूप में उन्होंने धर्म के नियमों का पालन नहीं किया। उन्होंने द्रोपदी के पाँच पुत्रों की तब हत्या की जब वे सो रहे थे। युद्ध के नियमों के अनुसार, रात के समय युद्ध करना नियम के विरुद्ध था। इस कृत्य ने अश्वत्थामा को अधर्म के पथ पर और आगे धकेल दिया। यवहीं दूसरी ओर भगवान विष्णु रूपी श्रीकृष्ण, जो धर्म की स्थापना के लिए अवतरित हुए थे। उन्होंने अश्वत्थामा के इस अधर्म को सहन नहीं किया और अश्वत्थामा के उन धर्मविरोधी कार्यों के लिए, श्राप रूपी कठोर दंड दिया।
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अश्वत्थामा का अहंकार और क्रोध
अश्वत्थामा का अहंकार और क्रोध उनके पतन का मुख्य कारण था। अश्वत्थामा ने अपने अहंकार में आकर कई अनुचित और अनैतिक कार्य किए थे। कृष्ण ने उन्हे श्राप देकर यह सिखाने का प्रयास किया कि, अहंकार और क्रोध का परिणाम सदैव विनाशकारी होता है। इस श्राप के माध्यम से, कृष्ण ने यह संदेश दिया कि धर्म और न्याय की सदा जीत होती है और अधर्म का अंत हर हाल में सुनिश्चित होता है।
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अश्वत्थामा को कृष्ण द्वारा श्राप देने की घटना महाभारत के युद्ध के महत्वपूर्ण शिक्षाओं में से एक है। यह घटना धर्म, न्याय, और अहंकार के परिणामों का प्रतीक है। भगवान कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप देकर यह सिखाया कि,अधर्म का मार्ग अपनाने वालों को अपने कृत्यों के लिए अवश्य ही दंडित होना पड़ता है।